वह पतझड़ का मौसम था। कालिया खिलने
से पहले ही मुरझाई सी ज़मीन की ओर देख रही थी। मैं झील के
किनारे बैठा सूरज को डूबता देख रहा था। हर रात की तरह उस रात
भी मुझे अपने चाँद का इंतज़ार था। मैं सूखी झील को भरने की
कोशिश तो कर रहा था पर..............
अचानक सब कुछ बदल गया।।।।। पतझड़ बहार में बदल चुकी
थी, कलियाँ फूल बन चुकी थी, हरे पेड़ो पर चिड़िया चेह-चाहा रही थी।
यू तो गगन साफ़ था पर एक बादल कुछ ऐसे पास आकर रुका, की मानो
मुझे छाव देने ही आया हो, मुझमें उमंग और उल्लास भर गया, मेरी
आवाज़ बुलंद, दृष्टि साफ़ और सोच सकारात्मक हो गयी। एक संतुष्टि
सी मेहसूस कर रहा था मैं। जैसे मेरा जहां मेरे पास बैठा हो ।।
जैसे मेरी सारी खवाईशे पूरी हो गयी हो ।
मैं आपनी आँखे बंद किये उस बे-मौसम आई बहार का
आनंद लेने लगा।।।।जब आँख खुली तो देखा की वो बहार जा चुकी
थी, सूरज दिशा बदल चूका था। कलियाँ फिर खिलने की जहदोजहद में
मशरूफ हो चुकी थी। ये अनुभव मेरे लिए कुछ नया नहीं था। जिस दुनिया में मैं रहता था वहा अक्सर ये होता है। शायद हर रात की तरह मैं कल रात भी अपने चाँद का इंतज़ार करते करते उसके सपनो में खो गया था।
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Thanks for taking out the time...........