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Saturday, January 8, 2011

आज फ़िर ना जाने कैसे, नींद रास्ता भटक गयी।


आज फ़िर नींद  ना जाने कैसे ,
रास्ता अपना भटक गयी। 

और चांद से बात करते करते ,
सूरज से मुलाकात हो गयी। 

मैंने तो ज़िक्र नहीं किया
फ़िर ना जाने कैसे उनकी बात छिड गयी। 

और बांतो ही बांतो में 
सारी रात गुज़र गयी।


3 comments:

Vishrut Shukla said...

Good one :)

Keevin.Leoncito said...

well keep at it ...hope you earn good dough

Vipul Pathak said...

@Vishrut and @Keevin

Thanks :)

Post a Comment

Thanks for taking out the time...........

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